7 जून 2025 – एक ऐतिहासिक उपलब्धि में, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार, भारत 2025 के अंत तक जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है, जिसका नाममात्र जीडीपी 4.19 ट्रिलियन डॉलर होगा। यह उपलब्धि भारत के लिए एक महत्वपूर्ण छलांग है, जो 2014 में दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से महज एक दशक में चौथे स्थान पर पहुंच गया है।
मजबूत विकास से प्रेरित मील का पत्थर
आईएमएफ की अप्रैल 2025 में जारी विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट के अनुसार, भारत का नाममात्र जीडीपी 2025-26 वित्तीय वर्ष के अंत तक 4.187 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो जापान के अनुमानित 4.186 ट्रिलियन डॉलर से थोड़ा अधिक है। भारत की तेज आर्थिक वृद्धि, जो 1990 से 2023 तक औसतन 6.7% रही, ने संयुक्त राज्य अमेरिका (3.8%), जर्मनी (3.9%) और जापान (2.8%) जैसे प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ दिया है। 2025 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि 6.2% रहने का अनुमान है, जो जापान की 0.6% की तुलना में काफी अधिक है। यह वृद्धि मजबूत बुनियादी ढांचा विकास, युवा और गतिशील कार्यबल, और बढ़ती उपभोक्ता मांग से प्रेरित है।
प्रयागराज में आयोजित महा कुम्भ 2025, एक विशाल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन, ने पर्यटन, आतिथ्य और संबंधित क्षेत्रों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को लगभग 4 लाख करोड़ रुपये (48 अरब डॉलर) का योगदान देकर आर्थिक उछाल प्रदान किया है। इस आयोजन को एक “आर्थिक सिक्सर” के रूप में वर्णित किया गया है, जिसने भारत को चौथा स्थान हासिल करने में मदद की।
चौथे स्थान तक का सफर
भारत का उदय रणनीतिक सुधारों और निरंतर विकास से चिह्नित रहा है। 2022 में यूनाइटेड किंगडम को पीछे छोड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद, भारत ने अब जापान के साथ अंतर को कम कर लिया है, जो 2010 तक दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, जब इसे चीन ने पीछे छोड़ दिया था। अगला मील का पत्थर बड़ा है: भारत 2027 तक जर्मनी, जो वर्तमान में 4.74 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, को पछाड़ने की ओर अग्रसर है। 2026 के अंत तक भारत का नाममात्र जीडीपी 4.6–4.7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
सुर्खियों से परे चुनौतियां
हालांकि भारत का वैश्विक जीडीपी रैंकिंग में उछाल उत्सव का कारण है, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि केवल नाममात्र जीडीपी पूरी कहानी नहीं बताता। 2025 में भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी 2,880 डॉलर है, जो जापान के 33,995 डॉलर की तुलना में काफी कम है, जो व्यक्तिगत समृद्धि और जीवन स्तर में अंतर को दर्शाता है। भारत की लगभग 45% कार्यबल अभी भी कृषि में कार्यरत है, जबकि जापान और पोलैंड में यह 10% से कम है, जो औद्योगीकरण और सेवा क्षेत्र के विकास की आवश्यकता को दर्शाता है। इसके अलावा, भारत की शिशु मृत्यु दर (24.5 प्रति 1,000 जीवित जन्म) जापान (5 से कम) से पीछे है, जो स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच में असमानता को उजागर करता है।
आय असमानता एक और गंभीर चिंता है। भारत के सबसे अमीर 1% लोग देश की 41% संपत्ति के मालिक हैं, और 90% आबादी 25,000 रुपये (300 डॉलर) प्रति माह से कम कमाती है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत की वृद्धि को वास्तव में समावेशी बनाने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढांचे में निवेश महत्वपूर्ण है।
समय से पहले उत्सव?
नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया दावों ने कि भारत ने पहले ही जापान को पीछे छोड़ दिया है, बहस छेड़ दी है। नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी सहित विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि भारत 2025 के अंत तक यह मील का पत्थर हासिल करने की राह पर है, लेकिन यह अभी तक नहीं हुआ है। वर्तमान अनुमानों के अनुसार, 2024 में भारत का जीडीपी 3.91 ट्रिलियन डॉलर है, जो जापान के 4.03 ट्रिलियन डॉलर से थोड़ा पीछे है। भारत की नई रैंकिंग की आधिकारिक पुष्टि मई 2026 में होगी, जब 2025-26 वित्तीय वर्ष के लिए जीडीपी अनुमान अंतिम रूप से तैयार किए जाएंगे।
आगे का रास्ता
भारत की आर्थिक प्रगति आशाजनक है, अनुमानों के अनुसार यह अगले दो वर्षों में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। हालांकि, इस वृद्धि को बनाए रखने के लिए संरचनात्मक चुनौतियों, जैसे नौकरशाही बाधाओं को कम करने, रोजगार सृजन को बढ़ाने और शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे सामाजिक संकेतकों में सुधार की आवश्यकता है। उद्योग जगत के नेताओं ने प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने और मध्यम-आय जाल से बचने के लिए गहरे सुधारों की मांग की है।
जब भारत इस आर्थिक मील के पत्थर का जश्न मना रहा है, तब ध्यान इस बात पर केंद्रित होना चाहिए कि वृद्धि को इसके 1.4 अरब नागरिकों के जीवन में ठोस सुधार में बदला जाए। अपनी जनसांख्यिकीय श्रेष्ठता और वैश्विक आर्थिक प्रभाव के साथ, भारत वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को फिर से परिभाषित करने की स्थिति में है—यदि वह महत्वाकांक्षा और समावेशी प्रगति के बीच की खाई को पाट सकता है।
स्रोत: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, टाइम्स ऑफ इंडिया, द हिंदू, इंडिया टुडे, दक्कन हेराल्ड, हिंदुस्तान टाइम्स