हाल ही में भारत और फ्रांस के बीच रक्षा साझेदारी को लेकर एक नया विवाद सामने आया है, जिसमें भारतीय वायुसेना (IAF) द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले राफेल लड़ाकू विमानों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए हैं। यह विवाद विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन द्वारा प्रचारित उन दावों से जुड़ा है, जिनमें कहा गया है कि भारत-पाकिस्तान के हालिया सैन्य संघर्ष में राफेल विमानों का प्रदर्शन अपेक्षाओं से कम रहा। इस लेख में हम इस विवाद के विभिन्न पहलुओं और इसके पीछे के सिनो-पाक प्रचार के मकसद को समझने की कोशिश करेंगे।
राफेल विवाद की शुरुआत
7 मई 2025 को भारत द्वारा पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर शुरू किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने भारतीय वायुसेना के पांच लड़ाकू विमानों को मार गिराया, जिनमें तीन राफेल विमान शामिल थे। पाकिस्तान ने यह भी कहा कि इन विमानों को उनके चीनी मूल के J-10C लड़ाकू विमानों और PL-15E मिसाइलों की मदद से नष्ट किया गया। हालांकि, इन दावों का कोई ठोस सबूत, जैसे कॉकपिट फुटेज या रडार लॉग, पाकिस्तान द्वारा पेश नहीं किया गया। दूसरी ओर, भारत ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि उनके सभी पायलट सुरक्षित वापस लौटे हैं और कोई राफेल विमान नष्ट नहीं हुआ।
चीन और पाकिस्तान का प्रचार
पाकिस्तान के इन दावों को चीन की सरकारी मीडिया और सैन्य ब्लॉगर्स ने बढ़ावा दिया, जिसमें J-10C की कथित तकनीकी श्रेष्ठता को राफेल के मुकाबले प्रचारित किया गया। चीनी विशेषज्ञों ने दावा किया कि यह घटना दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों में उनके सैन्य उपकरणों की बिक्री को बढ़ावा दे सकती है, जहां राफेल जैसे यूरोपीय विमानों की मजबूत मौजूदगी है। उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया, जो 42 राफेल विमानों के लिए 8.1 बिलियन डॉलर का सौदा कर चुका है, अब इस विवाद के बाद अपनी रक्षा रणनीति पर पुनर्विचार कर रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रचार अभियान राफेल की युद्धक्षमता पर सवाल उठाकर भारत-फ्रांस रक्षा साझेदारी में दरार डालने की कोशिश है। इसके साथ ही, यह चीन के सैन्य उपकरणों को वैश्विक बाजार में बढ़ावा देने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, क्योंकि यूरोपीय प्रतिस्पर्धा के सामने चीन को बड़े सौदों में कठिनाई हो रही है।
भारत और फ्रांस का रुख
भारत ने पाकिस्तानी दावों को खारिज करते हुए कहा कि ऑपरेशन सिंदूर में उसके विमानों ने पाकिस्तान के कई प्रमुख ठिकानों को नष्ट किया। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि कोई राफेल विमान नहीं खोया गया, और प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) ने सोशल मीडिया पर प्रसारित पुरानी तस्वीरों को गलत ठहराया, जो कथित तौर पर राफेल के मलबे की थीं। एक फ्रांसीसी विशेषज्ञ, जेवियर टायटलमैन, ने भी स्पष्ट किया कि जम्मू-कश्मीर के वुयान में मिला मलबा एक ड्रॉप टैंक का था, न कि किसी विमान का।
दूसरी ओर, राफेल निर्माता डसॉल्ट एविएशन ने इन दावों पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन फ्रांस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि यदि राफेल का कोई नुकसान हुआ भी, तो यह उसकी दो दशक की सेवा में पहली बार होगा। इसके साथ ही, डसॉल्ट ने भारत में राफेल की रखरखाव और प्रशिक्षण प्रक्रियाओं पर सवाल उठाए, जिसे भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर ऑडिट के लिए मना कर दिया।
भारत-फ्रांस रक्षा साझेदारी
इस विवाद के बावजूद, भारत और फ्रांस के बीच रक्षा सहयोग मजबूत बना हुआ है। हाल ही में डसॉल्ट एविएशन और भारत की टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) ने चार उत्पादन हस्तांतरण समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जो भारतीय वायुसेना के 114 मल्टी-रोल फाइटर विमानों की आवश्यकता को पूरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह सौदा भारत की स्वदेशी विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में योगदान देने में मदद करेगा। इसके अलावा, भारत ने हाल ही में 26 राफेल-एम (मरीन) विमानों का ऑर्डर दिया है, जो भारतीय नौसेना के लिए है।
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की आगामी फ्रांस यात्रा का उद्देश्य इस रक्षा साझेदारी को और मजबूत करना और राफेल विवाद से उत्पन्न होने वाली किसी भी गलतफहमी को दूर करना है।
क्या है प्रचार का मकसद?
विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान और चीन का यह प्रचार अभियान न केवल राफेल की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने का प्रयास है, बल्कि भारत के रक्षा आधुनिकीकरण और फ्रांस के साथ उसके रणनीतिक संबंधों को कमजोर करने की कोशिश भी है। इसके साथ ही, यह अभियान दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व में चीनी सैन्य उपकरणों को बढ़ावा देने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि राफेल एक सिद्ध और उन्नत लड़ाकू विमान है, और इस तरह के प्रचार अभियानों का इसकी तकनीकी क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। भारत और फ्रांस दोनों इस प्रचार को नजरअंदाज करते हुए अपनी रक्षा साझेदारी को और गहरा करने की दिशा में काम कर रहे हैं।
निष्कर्ष
राफेल विवाद भारत-फ्रांस संबंधों के लिए एक अस्थायी चुनौती हो सकता है, लेकिन दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी इससे कहीं अधिक मजबूत है। पाकिस्तान और चीन का प्रचार अभियान भले ही अल्पकालिक भ्रम पैदा करे, लेकिन भारत और फ्रांस के बीच गहरे रक्षा और कूटनीतिक संबंध इसे प्रभावित करने में सक्षम नहीं हैं। भारत का राफेल पर भरोसा और फ्रांस के साथ उसका सहयोग भविष्य में और मजबूत होने की उम्मीद है।