नई दिल्ली | 11 जून, 2025 — देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि अगर दो वयस्क अपनी इच्छा से साथ रहना चाहते हैं, तो उनके धर्म के आधार पर राज्य या कोई भी व्यक्ति उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता। अदालत ने इसे व्यक्ति की निजता, गरिमा और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा बताया है।
सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायमूर्ति [नाम] की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह टिप्पणी एक अंतरधार्मिक प्रेमी जोड़े की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। इस जोड़े ने अपने परिवार और स्थानीय प्रशासन से सुरक्षा की मांग करते हुए अदालत का रुख किया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि दोनों बालिग हैं और अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं, लेकिन धर्म के आधार पर उन्हें परेशान किया जा रहा है।
फैसले में कोर्ट ने कहा, “जब दो बालिग आपसी सहमति से एक साथ रहने का फैसला करते हैं, तो किसी व्यक्ति, समाज या राज्य का धर्म, जाति या किसी भी आधार पर उसमें दखल देने का अधिकार नहीं है।”
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब देश के कई हिस्सों में अंतरधार्मिक जोड़ों को परेशान किए जाने की घटनाएँ बढ़ी हैं। खासकर उन राज्यों में, जहाँ तथाकथित ‘लव जिहाद’ विरोधी कानून लागू किए गए हैं। इन कानूनों की आलोचना करने वालों का कहना है कि ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संविधान प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक बार फिर यह साफ करता है कि संविधान के तहत हर वयस्क को अपने जीवनसाथी चुनने का अधिकार है और धर्म या जाति के आधार पर उसमें किसी भी प्रकार की बाधा असंवैधानिक है।